- अंतरराष्ट्रीय बाजार vs. भारतीय कीमतें
- सरकार की टैक्स नीतियों का असर
- रिफाइनरी मार्जिन और कंपनियों का लाभ
नई दिल्ली। कच्चे तेल की कीमतें गिरकर 65.41 डॉलर प्रति बैरल पर पहुँच गई हैं, जो अप्रैल 2021 के बाद से सबसे निचला स्तर है। हालाँकि, इसके बावजूद भारत में पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई कमी नहीं की गई है। तेल कंपनियों को पेट्रोल पर ₹12-15 प्रति लीटर और डीजल पर ₹6.12 प्रति लीटर का मुनाफा हो रहा है।
तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ा, ग्राहकों को राहत नहीं
पिछले 5 वर्षों में 7 प्रमुख तेल-गैस कंपनियों ने लगातार मुनाफा कमाया है। सिर्फ आईओसी को 2019-20 में 934 करोड़ रुपये का मामूली घाटा हुआ था। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सबसे ज्यादा ₹2.86 लाख करोड़ का लाभ कमाया, जबकि ओएनजीसी दूसरे स्थान पर रही। इन कंपनियों ने पिछले 5 साल में कुल ₹7 लाख करोड़ से अधिक का मुनाफा कमाया, लेकिन ग्राहकों को पर्याप्त राहत नहीं दी गई।
तेल कंपनियों का मुनाफा बढ़ा, ग्राहकों को राहत नहीं
पिछले 5 वर्षों में 7 प्रमुख तेल-गैस कंपनियों ने लगातार मुनाफा कमाया है। सिर्फ आईओसी को 2019-20 में 934 करोड़ रुपये का मामूली घाटा हुआ था। रिलायंस इंडस्ट्रीज ने सबसे ज्यादा ₹2.86 लाख करोड़ का लाभ कमाया, जबकि ओएनजीसी दूसरे स्थान पर रही। इन कंपनियों ने पिछले 5 साल में कुल ₹7 लाख करोड़ से अधिक का मुनाफा कमाया, लेकिन ग्राहकों को पर्याप्त राहत नहीं दी गई।
सब्सिडी का 85% हिस्सा पेट्रोल-डीजल टैक्स से वसूला
2024-25 में केंद्र और राज्य सरकारों की कुल सब्सिडी ₹8.51 लाख करोड़ रही। इसकी भरपाई के लिए पेट्रोल-डीजल पर टैक्स से ₹7.2 लाख करोड़ (85%) जुटाए गए। यानी, सरकारें जनता को दी गई सब्सिडी का अधिकांश हिस्सा पेट्रोल-डीजल पर टैक्स लगाकर वापस ले लेती हैं।
पेट्रोल-डीजल पर कितना टैक्स?
- पेट्रोल: केंद्र सरकार ₹21.90 (एक्साइज ड्यूटी) + राज्य सरकार (दिल्ली) ₹15.39 (वैट) = कुल ₹37.30 प्रति लीटर
- डीजल: केंद्र सरकार ₹17.80 + दिल्ली सरकार ₹12.83 = कुल ₹30.63 प्रति लीटर
औसतन, एक व्यक्ति प्रतिमाह पेट्रोल पर ₹104.44 और डीजल पर ₹193.58 टैक्स देता है।
भविष्य में क्या हो सकता है?
- अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद, भारत में कीमतें कम होने की संभावना कम है क्योंकि सरकार टैक्स राजस्व पर निर्भर है।
- निजी कंपनियाँ (जैसे रिलायंस और नायरा) सस्ते दामों पर पेट्रोल-डीजल बेच रही हैं, जिससे सरकारी कंपनियों का बाजार हिस्सा घट सकता है।
- पेट्रोल-डीजल अब एक “राजनीतिक वस्तु” बन चुका है, जिस पर सरकार का सीधा नियंत्रण है।
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