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क्या भारत चीन के मुकाबले ‘वैकल्पिक विनिर्माण केंद्र’ बन पाएगा?

  • अमेरिका-चीन टकराव: क्या यह नया “शीत युद्ध” है?
  • भारत के लिए अवसर या चुनौती?

  • वैश्विक सप्लाई चेन पर संकट

वॉशिंगटन।  डोनाल्ड ट्रंप द्वारा चीन पर 125 प्रतिशत टैरिफ लगाने और 75 देशों को 90 दिन की टैरिफ छूट देने के फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यह केवल व्यापार संतुलन का मामला नहीं, बल्कि अमेरिका और चीन के बीच वर्चस्व की जंग है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह लड़ाई महज आर्थिक नहीं, बल्कि रणनीतिक भी है जिसमें टैरिफ सिर्फ एक हथियार है।

बीते तीन दशकों में चीन ने निर्यात के दम पर 19 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था खड़ी कर ली, जबकि अमेरिका 30 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के साथ अब चीन की सामरिक और तकनीकी प्रगति पर लगाम लगाने की कोशिश कर रहा है। अमेरिका इस लक्ष्य को टैरिफ और तकनीकी ब्लाकेड के जरिये हासिल करने की रणनीति पर काम कर रहा है।

भारत पर कैसा होगा असर?

1. स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स हो सकते हैं महंगे
भारत के मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए चीन पर भारी निर्भरता है। बैटरी, सेमीकंडक्टर और डिस्प्ले पैनल जैसे अहम कंपोनेंट चीन से आयात होते हैं। ऐसे में चीन से आयात में रुकावट स्मार्टफोन, लैपटॉप और अन्य उपकरणों की कीमतें बढ़ा सकती है।

2. फार्मा सेक्टर को झेलनी पड़ सकती है लागत की मार
भारत फार्मा मैन्युफैक्चरिंग में अग्रणी है, लेकिन दवाओं के लिए जरूरी करीब 70% कच्चा माल चीन से आता है। इस सप्लाई में अड़चन से न सिर्फ उत्पादन लागत बढ़ेगी, बल्कि एक्सपोर्ट भी प्रभावित हो सकता है।

3. स्टील उद्योग पर बढ़ेगा संकट
चीन अमेरिकी और यूरोपीय बाजारों में स्टील नहीं बेच पाएगा तो भारत जैसे देशों में डंपिंग बढ़ सकती है। इससे घरेलू बाजार में कीमतें गिरेंगी और पहले से ही दबाव में चल रहे भारतीय स्टील उत्पादकों पर असर पड़ेगा।

4. आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर को मिलेगा मौका
भारत की आईटी कंपनियों के लिए यह एक अवसर बन सकता है। अमेरिकी कंपनियां चीन की बजाय भारत में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट, बैकएंड प्रोसेसिंग और एआई सपोर्ट आउटसोर्स कर सकती हैं।

5. कृषि उत्पादों के लिए खुल सकते हैं नए दरवाज़े
चीन अगर अमेरिकी कृषि उत्पाद नहीं खरीदेगा तो भारत के लिए सोयाबीन और कॉटन जैसे उत्पादों को निर्यात करने का अवसर बढ़ सकता है।

तकनीकी क्षेत्र में भी चीन पर असर

ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिका चीन पर टेक्नोलॉजिकल ब्लाकेड को और सख्त कर सकता है, जिससे चीन के लिए एडवांस्ड माइक्रोचिप्स की आपूर्ति बाधित हो सकती है। यह चिप्स आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे अत्याधुनिक क्षेत्रों के लिए बेहद जरूरी हैं, और चीन अब तक इन्हें खुद बनाने में सक्षम नहीं हो पाया है।

कौन-कौन से देश आ सकते हैं अमेरिकी दबाव में?

चीन को वैश्विक व्यापार से अलग-थलग करने की कोशिशों में अमेरिका कंबोडिया, वियतनाम और मैक्सिको जैसे देशों पर दबाव बना सकता है कि वे चीन से व्यापारिक संबंध सीमित करें, अगर उन्हें अमेरिकी बाज़ार में टिके रहना है।

क्या होगा वैश्विक असर?

आईएमएफ के मुताबिक, अमेरिका और चीन की संयुक्त अर्थव्यवस्था वैश्विक जीडीपी का 43 प्रतिशत है। ऐसे में इन दोनों देशों के बीच गहराते तनाव से दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाएं प्रभावित होंगी। व्यापारिक गतिरोध अगर लंबा खिंचता है तो मंदी का खतरा भी मंडरा सकता है।