- यूपी के 20 जिलों में लोहिया संस्थान करेगा लेड विषाक्तता की जांच
- बच्चों, गर्भवती महिलाओं और श्रमिकों के खून में मापी जाएगी सीसे की मात्रा
- मिट्टी, पानी, मसाले, बर्तन समेत पर्यावरणीय स्रोतों की भी होगी जांच
लखनऊ। उत्तर प्रदेश में पहली बार पर्यावरण में फैल रहे लेड (सीसे) के खतरे को लेकर गर्भवती महिलाओं, बच्चों और औद्योगिक श्रमिकों के स्वास्थ्य की जांच की जाएगी। इस दिशा में डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान, लखनऊ को बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। यह अभियान वर्ल्ड बैंक द्वारा फंडेड ‘सीसा विषाक्तता आकलन परियोजना’ के तहत संचालित किया जा रहा है।
डिप्टी सीएम ने दिए निर्देश
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने इस प्रोजेक्ट को लेकर चिकित्सा शिक्षा विभाग के प्रमुख सचिव को निर्देश दिए हैं कि संबंधित जिलों में लोहिया संस्थान की टीम को पूर्ण सहयोग दिया जाए और जरूरी संसाधन जल्द उपलब्ध कराए जाएं।
क्यों खतरनाक है लेड?
विशेषज्ञों के मुताबिक, लेड का सीधा असर तंत्रिका तंत्र, हड्डियों और रक्त प्रणाली पर पड़ता है। गर्भवती महिलाओं और बच्चों के लिए यह अत्यंत हानिकारक है। इससे बच्चों के मानसिक और शारीरिक विकास में रुकावट आती है। इन्हीं कारणों से इस अध्ययन की शुरुआत की जा रही है।
खून और पर्यावरणीय स्रोतों की होगी जांच
परियोजना के अंतर्गत गर्भवती महिलाओं और 2 से 14 वर्ष के बच्चों के खून में सीसे की मात्रा का आकलन किया जाएगा।
प्राथमिक और शहरी स्वास्थ्य केंद्रों की मदद से मिट्टी, पेयजल, मसाले, बर्तन, सौंदर्य प्रसाधन व भोजन से जुड़े पर्यावरणीय स्रोतों के नमूने भी लिए जाएंगे।
औद्योगिक श्रमिक भी होंगे जांच के दायरे में
परियोजना में औद्योगिक क्षेत्रों में काम करने वाले श्रमिकों के रक्त सैंपल की भी जांच की जाएगी।
आशा कार्यकर्ता और एएनएम द्वारा घर-घर सर्वे किया जाएगा और पात्र व्यक्तियों की पहचान कर टीम को जानकारी दी जाएगी।
इन 20 जिलों में लागू होगा प्रोजेक्ट
यह परियोजना उत्तर प्रदेश के 20 जिलों – आगरा, मथुरा, मैनपुरी, अलीगढ़, हाथरस, एटा, फर्रुखाबाद, फिरोजाबाद, कानपुर नगर, कानपुर देहात, बांदा, झांसी, कन्नौज, औरेया, जालौन, हमीरपुर, महोबा, ललितपुर, चित्रकूट और कासगंज में शुरू की जा रही है।
स्वास्थ्य सुरक्षा की दिशा में अहम कदम
डिप्टी सीएम ब्रजेश पाठक ने कहा कि,
“यूपी में पहली बार लेड टेस्टिंग इनिशिएटिव की शुरुआत हो रही है। यह अध्ययन गर्भवती महिलाओं, बच्चों और जोखिम वाले वर्गों की सेहत में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।”
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