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ईंधन का आयात कम करना ही है भारत का आर्थिक राष्ट्रवाद :गडकरी

नयी दिल्ली। केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने ग्रीन हाइड्रोजन को भविष्य का ईंधन बताते हुए कहा है कि ईंधन नीति में बदलाव से भारत के किसान सशक्त होंगे और उन्हें अन्नदाता से ऊर्जादाता बनाने का सपना जल्दी पूरा होगा। श्री गडकरी ने मंगलवार देर शाम को राष्ट्रीय पत्रिका पांचजन्य एवं ऑर्गनाइज़र समूह द्वारा आयोजित पर्यावरण पर आयोजित एक संगोष्ठी में यह बात कही। कार्यक्रम में पूर्व केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर, गोवा के वन एवं पर्यावरण मंत्री विश्वजीत राणे, भारत में नेपाल के राजदूत डॉ. शंकर प्रसाद शर्मा, परमार्थ निकेतन के आचार्य स्वामी चिदानंद मुनि जी महाराज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय पर्यावरण प्रमुख गोपाल जी आर्य शामिल हुए। पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर, ऑर्गनाइज़र के संपादक प्रफुल्ल केतकर और भारत प्रकाश के प्रबंध निदेशक भारत भूषण अरोड़ा ने अतिथियों का स्वागत एवं सम्मान किया।

कार्यक्रम में दो सत्र पर्यावरणविदों – राजस्थान की सुश्री क्षिप्रा माथुर और उत्तराखंड के सच्चिदानंद भारती ने भी अपने अनुभवों को साझा किया। पर्यावरण संरक्षण में भिन्न भिन्न माध्यम से योगदान देने वाले कुछ लोगों को सम्मानित भी किया गया। अंतिम सत्र में श्री गडकरी ने पांचजन्य के संपादक हितेश शंकर के सवालों के जवाब देते हुए कहा कि भारत हर साल करीब दस लाख करोड़ रुपए जीवाश्म ईंधन यानी पेट्रोल, डीज़ल, द्रवीकृत पेट्रोलियम गैस (एलपीजी) के आयात पर व्यय करता है। खाद्य तेलों के आयात पर डेढ़ लाख करोड़ रुपए व्यय हो रहे हैं। देश के बाहर जाने वाले इस धन को राेकना है। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व सरसंघचालक के एस सुदर्शन कहा करते थे कि देश के किसान बिजली, ईंधन और भोजन तीनों के उत्पादन में सक्षम हैं। पहले उनकी लीक से हट कर की गयीं बातों को गंभीरता से नहीं लिया गया लेकिन उन्होंने किसानों और उनकी उपज के कचरे से इथेनाल बनाने की शुरुआत सुदर्शन जी की सीख के आधार पर की।

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श्री गडकरी ने कहा कि इस समय देश में करीब ढाई सौ कारखानों में 450 करोड़ लीटर इथेनाल बन रहा है जबकि हमें 1000 करोड़ लीटर पेट्रोल में मिश्रित करने के लिए और एक हजार करोड़ लीटर जेनेरेटर सेट के लिए चाहिए। पेट्रोल में दस प्रतिशत इथेनाल मिलाया जाना है। उन्होंने कहा कि जल्द ही देश में कई वाहन कंपनियां फ्लैक्स इंजन वाले वाहन लांच करेेंगी जिनमें पेट्रोल या इथेनॉल दोनों में से कोई भी ईंधन से वाहन चल सकेगा। उन्होंने कहा कि एक लीटर पेट्रोल में उतनी ही कैलारी होती हैं जितनी 1.3 लीटर इथेनॉल में। जबकि एक लीटर इथेनाल केवल 60-62 रुपए प्रति लीटर का पड़ता है।

उन्होंने कहा कि जल्द ही देश के विभिन्न भागों में पराली, कृषि अवशेष, बांस, चावल के टुकड़ों, आदि से इथेनाल के सैकड़ों कारखाने और लगाये जाएंगे। उन्होंने कहा कि देश में कोयला भंडारों में मीथेनाल गैस तैयार हो रही है जिसे एलपीजी में 15 से 20 फीसदी मिश्रित करने से रसोई गैस की लागत में कमी आएगी। इस प्रकार से ईंधन के मामले में हम आयात घटाने और आत्मनिर्भर बनने की ओर बढ़ रहे हैं। यही भारत का आर्थिक राष्ट्रवाद है।

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ग्रीन हाइड्रोजन का उल्लेख करते हुए श्री गडकरी ने कहा कि यह भारत का भविष्य का ईंधन है। गंदे पानी से हाइड्रोजन को निकालना और संपीडित करके ईंधन के रूप में इस्तेमाल करना पर्यावरण और जेब दोनों के लिए बहुत ही किफायती है। उन्होंने कहा कि देश की पेट्रोलियम कंपनियां इस दिशा में काम कर रही हैं और जल्द ही देश में ग्रीन हाइड्रोजन से चलने वाली गाड़ियां सड़कों पर नज़र आने लगेंगी। उन्होंने कहा कि भारत ना केवल ग्रीन हाइड्रोजन के मामले में आत्मनिर्भर होगा बल्कि विश्व में सबसे बड़ा निर्यातक भी बनेगा।

इलैक्ट्रिक वाहनों के बाज़ार के बारे में उन्होंने कहा कि भारत में यह बाजार तेजी से विस्तार कर रहा है। अधिकतर लोग बिजली चालित वाहन खरीद रहे हैं। कई कंपनियों ने तो पेट्रोलियम पदार्थों से चलने वाले वाहनों का विनिर्माण बंद करके इलैक्ट्रिक वाहन बनाना शुरू कर दिया है। पुराने वाहनों की स्क्रैप नीति का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि इससे नये वाहनों की लागत में कमी आ रही है और नये वाहन की ईंधन दक्षता अधिक होने से पर्यावरण पर बहुत अनुकूल प्रभाव पड़ रहा है।

उत्तराखंड में चार धामों को रोप वे से जोड़ने की याेजना के बारे में उन्होंने कहा कि तीर्थयात्रियों के लिए पहाड़ों के ऊपर ही ऊपर एक जगह से दूसरी जगह जाना आसान होगा और दूरी एवं यात्रा अवधि भी कम होगी। राज्य में ऐसे 65 रोपवे परियोजनाओं को क्रियान्वित किया जाएगा। उन्होंने दिल्ली एवं अन्य राज्यों को कचरे से ऊर्जा एवं खाद बनाने के लिए प्रेरित किया और कहा कि आधुनिक युग में कचरा ही सोना है। उनकी राजनीतिक लोकप्रियता और नवान्वेषण की दृष्टि के बारे में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि वह काम को लेकर कभी राजनीति नहीं करते हैं।

इससे पहले के सत्रों में श्री जावड़ेकर ने कहा कि विश्व पर्यावरण के सामने प्लास्टिक एक बड़ी चुनौती है। भारत में कचरा बीनना भी अब एक व्यवसाय हो गया है। इसे लेकर सर्कुलर इकॉनोमी एवं रिसाइक्लिंग को लेकर बातें हो रहहीं हैं लेकिन छोटे छोटे पाउच, टॉफी, चॉकलेट के रैपर आदि अब भी कोई नहीं चुनता है। उन्होंने कहा कि भारत का प्रदर्शन इस मामले में दुनिया के कई देशों से अच्छा है। विश्व में वनक्षेत्र कम हुआ है और भारत में वन क्षेत्र बढ़ा है। उन्होंने खेतों में मेड़ और मेड़ पर पेड़ योजना को बढ़ावा देने और जंगलाें में जल संरक्षण को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

नेपाल के राजदूत डॉ. शंकर प्रसाद शर्मा ने नेपाल में पर्यावरण संरक्षण के प्रयासों पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि कार्बन उत्सर्जन को कम करने में नेपाल जलविद्युत के माध्यम से भारत की भी मदद कर रहा है। उन्होंने कहा कि जिस प्रकार भारत ने 2070 में नेट जीरो यानी शून्य कार्बन उत्सर्जन का लक्ष्य रखा है, उसी प्रकार से नेपाल ने 2045 में नेट जीरो का लक्ष्य तय किया है। उन्होंने कहा कि नेपाल का वन क्षेत्र कुल क्षेत्रफल का करीब 41 प्रतिशत है जिसे 2045 तक कम से कम 45 प्रतिशत करना है। उन्होंने कहा कि वैश्विक कार्बन उत्सर्जन एवं तापवृद्धि में नेपाल की कोई भूमिका नहीं है लेकिन तापवृद्धि का असर नेपाल पर होगा क्योंकि यहां हिमालय के ग्लेशियर पिघलने लगेंगे।

परमार्थ निकेतन के मुनि जी ने कहा कि पानी आने वाले दिनों में सोने जितना कीमती हो जाएगा। आज जो पानी की बोतलें 20 -25 रुपए की मिलती हैं, वे 200-250 रुपए में मिला करेंगी। उन्होंने पूरे विश्व में पंच महाभूत यानी अग्नि जल वायु पृथ्वी एवं आकाश के संतुलन की दृष्टि से सोचने और जलवायु को स्वच्छ रखने के उपाय करने पर बल दिया। उन्होंने भारतीय तकनीक एवं भारतीय प्रतिभा एवं श्रमबल के बूते पर जलस्रोतों को स्वच्छ करने के लिए प्रेरित किया।