झांसी। प्रथम स्वाधीनता संग्राम में अपने पराक्रम से अंग्रेजों के दांत खट्टे करने वाली महारानी लक्ष्मीबाई की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के झांसी आगमन को लेकर हो रही धूम के बीच रानी और उनके करीबी सिपहसालारों के वंशजों की पीड़ा कहीं गुम होकर रह गयी है। उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आगामी 19 नवंबर को रानी लक्ष्मीबाई जयंती के मौके पर झांसी आयेंगे। रानी के जन्मोत्सव में किसी प्रधानमंत्री के शामिल होने का यह पहला मौका है।
रानी और उनके करीबी सहयोगियों के वंशजों को मलाल है कि उनके पूर्वजों के अदम्य साहस को वंदन करने के लिए आयोजित किये जा रहे इस भव्य कार्यक्रम के आयोजकों ने उनकी कोई सुध नहीं ली। महारानी लक्ष्मीबाई के पिता
मोरेपंत तांबे के भाई राजाराम तांबे की वंशज विश्राम तांबे झांसी किले के उस ऐतिहासिक गणेश मंदिर में पुजारी हैं जिसमें रानी का विवाह राजा गंगाधर राव के साथ हुआ था। किले में आने वाला हर सैलानी इस मंदिर दीदार करना नहीं भूलते हैं। तांबे ने मंदिर में रानी के विवाह से जुड़ी “सीमांत पूजन” की रस्म तो पूरी करायी ही थी, साथ ही पास में स्थित कोठी कुंआ में उनका विवाह भी संपन्न कराया था।
रानी के पिता के वंशज आज भी इसी मंदिर की पूजा अर्चना एवं देखरेख करते हैं। रानी लक्ष्मीबाई के मुख्य तोपची गुलाम गौस खां के वंशज झांसी स्थित आवास विकास कालोनी में रहते हैं। रानी के अंगरक्षक कासिम खां और गुल मुहम्मद के वंशज भी झांसी में ही रहते हैं। रानी के मुख्य सेनापति जवाहर सिंह परमार जिन्होंने रानी के साथ नत्थे खां से लड़ाई लड़ी थी ,उनके वंशज वीरसिंह परमार झांसी के पास रक्सा गांव में रहते हैं।
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