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उत्तर प्रदेश सत्ता परिवर्तन और ब्राम्हण समाज की हिस्सेदारी

भारतीय लोकतंत्र में आजादी के बाद से आज तक राजनीति में धर्म व जातिवाद पर मतदान होते रहे हैं। जबकि लोकतंत्र में ना तो कोई ऐसा प्रधान है ना देश हित में उपयोगी। परंतु निर्वाचन की उदासीनता के कारण आजादी से अब तक देश के न मालूम कितने नेता जातिवाद, धर्मवाद का नारा देकर धरातल से बड़ी-बड़ी कोठियों व अरबों रुपए के मालिक बन गए । और धर्म व जाति एवं उनके मानने वाले वहीं के वहीं रहे । हर नेता या तो चुनाव के समय देश हित की बात करता है या धर्म ,जाति की। भारत की बेरोजगारी में बढी नेताओं की संख्या और उनका धनकुबेर देख युवा वर्ग भी राजनीति में आने को इच्छुक है। अगर ब्राह्मण समाज की बात करें तो ब्राह्मण समाज हमेशा से शिक्षित होने के कारण आजादी के बाद से देश की राजनीति में मुख्य भूमिका में रहा। कभी संपूर्ण ब्राह्मण समाज पंडित जवाहरलाल नेहरू के साथ जुड़कर देश के शासन तंत्र में अहम भूमिका निभाया करता था। और कांग्रेस में ब्राह्मण समुदाय का अपना मान सम्मान अलग ही था। परंतु इंदिरा गांधी के शासन काल के बाद धीरे-धीरे भारतीय ब्राह्मण हिंदुत्व के नाम पर संघ परिवार से जुड़कर अपनी राजनीतिक हिस्सेदारी को कम करता गया।

कांग्रेसकाल में उत्तर प्रदेश में 1946 से लेकर 1982 तक ब्राम्हणकाल में 6 मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण रहे। जबकि मध्यप्रदेश में 20 वर्ष तक कांग्रेस की सरकार में ब्राह्मण मुख्यमंत्री रहे। बात उत्तर प्रदेश की हो तो आजादी के बाद उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री ब्राह्मण समुदाय से गोविंद बल्लभ पंत थे ।1963 प्रदेश विधानसभा चुनाव की कांग्रेस जीत के बाद सुचेता कृपलानी यूपी की पहली महिला मुख्यमंत्री बनी उसके बाद कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा ,श्रीपति मिश्रा, नारायण दत्त तिवारी मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के तौर पर रहे ।इन मुख्यमंत्रियों के कार्यकाल को उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्रियों का ब्राम्हण काल कहा जाता है। जिसके बाद केंद्र की वीपी सिंह सरकार ने 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिश लागू कर ब्राह्मणों के इतिहास को बदल दिया । जिसके बाद से उत्तर प्रदेश में कोई भी ब्राह्मण मुख्यमंत्री नहीं रहा। कभी यूपी से लेकर केंद्र की कुर्सी पर राज करने वाले ब्राम्हण अब मात्र वोट बैंक बनकर चुनाव के समय याद किए जाते हैं । कांग्रेस से नाराज ब्राह्मण ने भाजपा में अपना भविष्य तलाश करने का प्रयास कर प्रदेश में भाजपा सरकार बनाई मगर चुनाव बाद समाज के हत्थे सिर्फ वादे मिले। फिर भाजपा के बाद ब्राह्मण समाज ने सतीश चंद्र मिश्रा पर विश्वास कर 2007 में बसपा को सहयोग कर बहुमत की सरकार बनाने में अहम भूमिका निभाई ।परंतु sc-st एक्ट के फर्जी मुकदमों से तंग आकर 2012 में सपा पक्ष में ब्राह्मण समुदाय ने खुलकर समर्थन कर जीत दिलाई। कुछ ही समय बाद यादव वाद के कारण एक बार फिर ब्राह्मण समुदाय 2017 में भाजपा की ओर पलटा और घर-घर भाजपा का झंडा लेकर प्रचार कर भाजपा को चुनाव में जीत दिलाई। उस वक्त भाजपा मुख्यमंत्री पद के दावेदारों में डॉक्टर दिनेश शर्मा भी शामिल थे जिस कारण उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समाज की मेहनत से 46 ब्राह्मण विधायक जीत कर आए।

परंतु चुनाव बाद मुख्यमंत्री पद पर नया चेहरा योगी आदित्यनाथ का सामने आया जिससे प्रदेश ब्राह्मण संतुष्ट नहीं था परंतु भाजपा का घर -घर प्रचार- प्रसार करने के बाद कुछ बोलना भी उचित नहीं था। ब्राह्मण समाज को संतुष्ट करने के लिए मंत्रिमंडल में 10 मंत्रियों को जगह दी गई। जो कि ब्राह्मण थे परंतु उत्तर प्रदेश में 2017 के बाद ऊंचाहार ब्राह्मण हत्याकांड हो या गोरखपुर ब्राह्मण हत्याकांड ऐसी ही घटनाएं होती रही राष्ट्रीय ब्राह्मण एकता संघ के सर्वे के अनुसार प्रदेश में 2017 से 22 तक 165 ब्राह्मणों की हत्या की गई। राजधानी लखनऊ में ही अभिषेक तिवारी हत्याकांड से उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों का भाजपा से मोहभंग हो गया। इसी कारण 10 ब्राह्मण मंत्रियों व ब्राह्मण उपमुख्यमंत्री होने के बाद भी भाजपा को ब्राह्मणों को रिझाने के लिए ब्राह्मण कमेटी का गठन करना पड़ा ।अब ब्राह्मण समाज के पास सत्ता में भागीदारी की सोच ना होकर ऊंट किस करवट बैठता है की ओर ध्यान है।

कारण राजनीति में मौजूद सत्ता के दलाल जो हर पार्टी में बैठे ब्राह्मण चेहरा होने का दावा तो करते हैं परंतु सत्ता मिलने के बाद उन्हें ना तो ब्राह्मणों की कोई याद आती है ना कोई समस्या ।क्योंकि ब्राह्मण समाज का नेतृत्व भी किसी सामाजिक कार्यकर्ता के हाथों में ना होकर नेताओं के हाथों में है जो बात तो सम्मान और हिस्सेदारी की करते हैं परंतु देते कुछ नहीं ।राजधानी के ही एक ब्राह्मण समाज के समाज सेवी आदर्श शुक्ला का कहना है कि मौजूदा सरकार में ब्राह्मण समाज की अनदेखी कर उन्हें प्रताड़ित किया और एनकाउंटर कराएं जिससे ब्राह्मण समाज नाराज है। इसी प्रकार कई ब्राह्मण बुद्धिजीवियों ने इस बात को स्वीकारा कि कभी भाजपा की प्रदेश में पहचान ब्राह्मणों से होती थी परंतु भाजपा सत्ता पाने के बाद सत्तालोभियों के झांसे में आकर ब्राह्मणों का जो अपमान और प्रताड़ना दी गई इसे ब्राह्मण समाज कभी भूल नहीं सकता।
-मो० ताहिर अहमद वारसी